Wednesday, January 4, 2012

गंगा (दूसरा भाग्)

मेरे पिता रोज़ पूजा पाठ नहीं करते, गंगा स्नान नहीं करते किंतु गंगा में उनकी अगाध श्रधा है. हर रोज वो गंगा तक ट्हलते हुए जाते हैं और उसे आंखों में भरकर लौटते हैं. उनका भी गंगा के साथ एक लम्बा नाता रहा है. बी एच यू. में संस्कृत और मनोविज्ञान के छात्र रहे मेरे पिता को हमारे शास्त्रों के उस पक्ष का अच्छा ज्ञान हैं जिसे इस नदी के किनारे बसी कई संस्कृतियों ने रचा है. वह जब भी गंगा के किनारे जाते हैं कई श्लोक गुनगुनाने लगते हैं और जब बहुत भाव विभोर हो जाते हैं तो सह्सा कह उठते हैं – ‘गंगे तव दर्शनार्थ मुक्ति’. इसी भवावस्था में गंगा क जल हाथ में ले कह उठते हैं कि यह जल नहीं अमृत है. किसी की मृत्यु पर गंगा जल मुँह् में डालने की भारतीय आस्था के सम्रर्थन में दृढ हो उठते हैं, किंतु जब वह एक विद्वान् की तरह हमारे साथ बात करते हैं तब गंगा पर उनकी बात कुछ वैज्ञानिक हो उठती है.
मैं कई बार सोच में पड जाती हूँ कि आखिर ऐसा क्यों है? क्या वजह है कि वो दो स्वरूपों में हमारे सामने होते हैं? क्यो ऐसा है कि वो संगम की भीड देखकर रो पडते हैं ? और क्यों इस नदी पर चर्चा करते हुए बहुत सयत तरीके से एक एक कर अपनी बात तर्क के साथ रखते हैं. उनका तर्क जहां मुझे गंगा को एक जलधारा के रूप में समझने में मदद करता है वहीं गंगा के प्रति उनका अभिभूत होना मुझे भरतीय जनमानस और गंगा के रिश्ते को समझने में मदद करता. मैं यहां पहले पिता के तर्क के हिस्से को रखने की कोशिश करूंगी ताकि यह समझा जा सके कि इस जलधारा के प्रति लोगों की अगाध श्रधा और भक्ति का कारण क्या है ? सबसे पहले गंगा नदी से जुदे कुछ तथ्य –
गंगा भारत की सबसे महत्व्पूर्ण नदी है.गंगा नदी की मुख्य् शाखा भागीरथी है जो कुमायूँ में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है. गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई ३१४० मीटर है। यह भारत और बांग्लादेश में मिलाकर २,५१० किमी की दूरी तय करती हुई अपनी सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। इसका २,०७१ कि.मी तक का भाग भारत में तथा शेष भाग बंग्लादेश में है. सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है.
वैज्ञानिकों का मनना है कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज़ नामक विषाणु पाये जाते हैं जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि गंगा नदी के जल में ऑक्सीजन की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है। ऐसा क्यों है? इसका कारण क्या है ? इसका अभी तक पता नहीं चल पाया है।
आंकडों के हिसाब से लगभग 40 करोड से अधिक लोग गंगा – यमुना के मैदान में रहते हैं यह लगभग भारत की कुल आबादी का एक तिहाई के लगभग है. गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाडी तक की यात्रा में गंगा भारत के कई राज्यों से गुजरती है. प्रमुख राज्य है- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल.

इस नदी में मछ्लियों और सर्पों की कई दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं 140 मछलियों की तथा 90 एम्फिबिया प्रजाति के जीव पाये जाते हैं. इनमें सबसे दुर्लभ है गंगा डाल्फिन जिसे हम सोंस भी कहते हैं. (डाल्फिन पर बात अगले किसी अंक में)
सोच रही हूँ तो क्या गंगा का महत्व सिर्फ उपरोक्त तथ्यों के कारण है? क्या दुनिया में ऐसे आंकडे किसी नदी के पास नहीं है? फिर् दूसरे देशों में किसी नदी के प्रति लोगों का इस तरह का लगाव क्यों नहीं है? क्यों अन्य जगहों पर लोग नदी को महज़ एक स्रोत मानकर जीते है ? और भी बहुत से सवाल है जो ऐसे ही उपजते होगे सबके मन में किंतु मेरे मन में यह किसी कीडे की तरह रेंगते हैं जो मुझे एक तरफ पडताल करने को मजबूर् करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ लोगों की अगाध श्रधा को समझने को मज्बूर करते हैं. इस पड्ताल से पहले मैं अपनी 10 वीं की इंगलिश की किताब का एक पाठ याद कर रही हूँ. लेखक का नाम अब याद नहीं आ रहा, भूल रही हूँ किंतु उस पाठ के गंगा अवतरण का अंश थोडा थोडा मुझे याद है. वह पाठ का एक दृश्य था कि –
गंगा को लेकर जब भगीरथ बढने लगे तो लोग गंगा के स्वागत में खडे चिल्लाने लगे, उसके जल में लोटने लगे, और गंगा की धारा आगे बढती रही. इस दृश्य् का उस पाठ में कुछ ऐसा चित्र था कि जब भी पापा उसे पढाते मैं और वो दोनो अभिभूत हो जाते. मैं आज इस दृश्य को मह्सूस कर सक्ती हूँ. इस मनोभव को भी. आप सब पूछेंगे कैसे ? हमारे भारत में आज भी बहुत से इलाके हैं जो इस तरह की नदी के लिये तड्प रहे हैं जैसे बुन्देल्खण्ड. इस इलाके में आज के समय में एक नहर भी आ जाये तो लोग उसे वैसे ही पूजेंगे शायद.
किंतु इस पाठ को पढने के बाद मन में गंगा और उसकी उत्त्पत्ति को लेकर मेरे मन में कुछ् विचार उठ खडे हुए और मैं गंगा के अवतरण को धर्म से इतर एक मनुष्य की तरह तर्क पर तोलने लगी. सोचने लगी कि भगीरथ की एक पैर पर खडे होने की तपस्या क्या रही होगी? शिव की जटाओं का अर्थ क्या रहा होगा?
भगीरथ गंगा को यहां लाये इस बात से यह तथ्य उभर कर आता है कि एक समय ऐसा जरूर था कि गंगा जिस जिस क्षेत्र में आज बहती हैं वह क्षेत्र गंगा के आने से पहले एक सूखा इलाका था. लोगों को एक जल स्रोत की बडी शिद्द्त से अवश्यकता थी. जितनी भी नदियां इस क्षेत्र में बहती थीं उनमें इतना पानी नहीं था कि वो लोगों की आव्श्यकता को पूरा कर सके. आंकडे बताते हैं कि गंगा के तट पर आज 400 मिलियन लोग रहते हैं मतलब ये कि इस मैदान पर रहने वाली एक बडी आबादी उस ऐतिहासिक दौर में भी पानी की कमी का समना कर रही थी. अगर हम गंगा को समझने के लिये इतिहास का सहारा ले तो पता चलता है कि एक दौर तक भारतीय आर्य संस्कृति में पंच नदियों का महत्व था जिसमे सरस्वती, व्यास , सतलज़ आदि नदियां आति हैं. किंतु धीरी धीरे आर्यों का आगमन उत्तर की तरफ हुआ तब उनके समग्र सहित्य में गंगा का मह्त्व बढा है. आप ऋग्वेद में पंच नदियों के मह्त्व को खूब पढ सकते हैं. मैने इतिहास में पढा है कि आर्य संस्क़ृति ग्राम प्रधान संस्कृति थी जिसमे गो पालन और कृषि मुख्य पेशा था. तो जाहिर है यहां जल के एक ऐसे स्रोत की अव्यशकता थी जो कि यहां के लोगों की आव्श्यकता को पूरी करे.
तो क्या राजा भगीरथ ने लोगों की इस अवश्यकता को समझ कर ही गंगा को यहां लाने का संकल्प लिया था ? क्या यहां रहने वाले लोग ही सगर के वो 60 हज़ार पुत्र थे जिनकी आत्मा पानी के लिये अत्रिप्त थी? क्या क्या भगीरथ एक कुशल इंजीनयर थे जो गंगा की धारा को भारत की तरफ मोड लाये थे? और भी बहुत से साल हैं जिसकी पड्ताल इस लेख के अगले भाग में
..................................... डा. अलका सिंह

1 comment:

  1. अद्भुत और तथ्यपूर्ण लेख .....रोचक भी .....मैं तो इसे पाठ्यक्रम में रखे जाने की अनुशंसा करूँगा ....अलका !मुझे लगता है कि वो अनुरोध जो मैंने किया .....वो विचार जो तुमारे मस्तिष्क में रेंगे ,कुलबुलाए ....राजा सगर की तपस्या का प्रतिफल ही हैं ...उनकी तपस्या का असर आज भी है .....फिर लिखूंगा ....तुम बस लिखती रहो .....वाह !

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