Friday, January 6, 2012

गंगा (भाग तीन)

जहां मैं रहती हूँ गंगा वहां से कोई 200 मीटर की दूरी पर हैं. इस लेखमाला ने मुझे जैसे प्रेरित किया कि एक बार मैं गगा के तट पर जाकर उसे छू कर आऊँ, उसको नमन कर आऊँ और बहुत कुछ ज्ञान लेकर आउँ जिसे सबसे से साझा कर सकूँ, इसीलिये कल मैं गंगा के तट पर घंटों बैठी उसे निहारती रही. आस पास देखकर ये अन्दाजा लगाती रही कि आखिर इस नदी को हमारा देश क्यों जीना चाहता है? क्यो जन्म से मृत्यु तक इसे बस अपने गले से लगाये रहना चाहता है? इसके विशाल तट को देखकर एक सम्मोहन पैदा होता. यह सम्मोहन भगीरथ के अथक प्रयास के प्रति भी पैदा होता है कि आखिर उन्होनें इतनी बडी नदी को कैसे लाने की योज़ना बनायी होगी. कैसे उनके इंजीनयरों ने दिन रात अथक परिश्रम किया होगा?
मैं यह सोच रही हूँ कि एक नदी को पृथवी पर लाने के उद्यम से क्या क्या बातें जुडी हो सकती हैं? क्य महज़ एक नदी को लाना? शायद नहीं! दर असल एक सूखे इलाके में एक जल स्रोत को लाना आसान काम नहीं होता वो भी गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक की यात्रा करना. इसलिये इस जल स्रोत को जमीन पर लाना और उसे इतने बडे क्षेत्र तक पहुंचाना आसान काम नहीं था. इस काम को किसी के आदेश पर झट से नहीं किया जा सकता था. कहते हैं कि सगर के बाद के कई राजाओं ने इसका प्रयत्न किया था किंतु वो सफल नहीं हुए थे. यह सफलता राजा भगीरथ को ही मिली. क्यो? यह ही सबसे अधिक विचारणीय प्रश्न है. इस सन्दर्भ को और अधिक बेह्तर तरीके से समझने के लिये मैं यहां इस लेख माला के पहले भाग में उद्धरित गंगा अवतरण् की कथा के बाद की कथा आप सबके सामने रखाती हूँ. बात कुछ इस तरह है कि –
"जब सगर को नारद मुनि के द्वारा अपने साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने का समाचार मिला तो वे अपने पौत्र अंशुमान को बुलाकर बोले कि बेटा! तुम्हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म हो जाना पड़ा। अब तुम कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे क्षमाप्रार्थना करके उस घोड़े को ले आओ। अंशुमान अपने दादाओं के बनाये हुये रास्ते से चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपनी प्रार्थना एवं मृदु व्यवहार से कपिल मुनि को प्रसन्न कर लिया। कपिल मुनि ने प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने के लिये कहा। अंशुमान बोले कि मुने! कृपा करके हमारा अश्व लौटा दें और हमारे दादाओं के उद्धार का कोई उपाय बतायें। कपिल मुनि ने घोड़ा लौटाते हुये कहा कि वत्स! जब तुम्हारे दादाओं का उद्धार केवल गंगा के जल से तर्पण करने पर ही हो सकता है। "
अंशुमान ने मुनि को प्रसन्न कर यज्ञ का अश्व प्रप्त किया और अपने पिता राजा सगर का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण करा दिया। यज्ञ पूर्ण होने पर उनके पिता राजा सगर ने एक बडा निर्णय लिया और अंशुमान को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये. अंशुमान के पुत्र का नाम दिलीप था. राजा अंशुमान ने भी दिलीप को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने का प्रयास किया और वो सफल नहीं हो पाये. इस कार्य में दिलीप के पुत्र भगीरथ को सफलता मिली के बड़े होने पर दिलीप ने भी अपने पूर्वजों का अनुगमन किया किन्तु गंगा को लाने में उन्हें भी असफलता ही हाथ आई।

यह कहानी हमारे धर्मिक ग्रथों में बार बार आयी है गंगा अवतरण के सन्दर्भ में. मैने इसे यहां इसलिये रखा क्योंकि ये समझा जा सके कि भगीरथ के पहले भी रघुकुल के कई राजाओं ने गंगा को पृथवी पर लाने का प्रयास किया था. तो इसका क्य मतलब हुआ ?

मुझे याद है स्कूल के दिनो में मैने एक अखबार के रविवासरीय अंक में राजा भगीरथ के इसी प्रयास पर एक लम्बा आलेख पढा था. वह आलेख कहता था कि राजा भगीरथ ना केवल एक कुशल इंजीनियर थे बल्कि उनके पास कुछ कुशल लोगों की एक पूरी टीम थी जिसने गंगा को पृथ्वी पर लाने की राजा भगीरथ के प्रयास् में उनकी मदद की थी. या यूँ कहें कि वो पूरी टीम उस अभियान का एक हिस्सा थी. जब यह आलेख पढा था तब भगीरथ को इस रूप में समझ पाने की ना तो क्षमता थी ना ही इच्छा क्योंकि मेरा किशोर मन तब अन्य दुनयावी बातों को तब अधिक महत्व देता था. संगीत से मुझे इतना लगव था कि गायिका बनने की सोचती थी किंतु ईश्वर ने मेरे भाग्य में जैसे इन विषयों को पढना और समझना लिखा था सो इतिहास की पढायी अनायास ना चाहते हुए पढने लगी और तब जैसे रुचि जाग ही गयी लिखने पढने के लिये.

आज भगीरथ को लेकर यह लेख लिखते वक्त उस अखबार का वह पूरा लेख, उसकी बातें, तर्क, बहुत से ऐतिहासिक गल्प, कुछ किताबें और गोमुख सब दिमाग में घूम रहे हैं और लग रहा है कि इस जल पुरुष को और उसके प्रयासों को सही तरीके से समझने का वक्त आ गया है. ना केवल समझने का बल्कि उनके किये कार्यों से सीखने का भी वक्त आ गया है. इसलिये मैं इस लेख को कई विषयों के साथ समझने का प्रयास करूंगी, मसलन, इतिहास, भूगोल, मानव शास्त्र, समाजशास्त्र आदि के साथ. सबसे पहले गंगा के उद्गम स्थल और भगीरथ प्रयत्न पर बात –
आर्यों के आने के पूर्व गंगा गंगा यमुना क मैदान कहा जाने वाला यह इलाका कैसा था इसकी ठीक ठीक तस्वीर साक्ष्यों के साथ फिलहाल मेरे पास नहीं है किंतु मैं यह कल्पना करने में स्क्षम हूँ कि इस पूरे इलाके में यदि गंगा जैसी नदी नहीं रही होगी तो यह इलाका कैसा रहा होगा? कैसे जीते होंगे यहां के लोग? क्या रहा होगा पूरा परिदृश्य ? मतलब साफ था कि यहां एक बडे जल स्रोत की बी बेहद आव्श्यकता थी. पर यह जल स्रोत कैसे आयेगा? किन रस्तों से होकर आयेगा और कहां तक जायेगा ? जिन रास्तों से होकर गुजरेगा उन जगहों पर उसके वेग को सम्भालने की व्यवस्था कैसी होगी ? कौन यह व्यवस्था करेगा ? ये सब कुछ ऐसे सवाल थे कि जो बेहद अहम सवाल थे. किंतु सबसे बडा सवाल था कि जलस्रोत की खोज.
मेरा ऐसा मानना है कि रघुकुल के सगर सहित जिन राजाओं ने गंगा को पृथ्वी पर लाने की तपस्या की दरसल उन्होने यह जानने का प्र्यास किया होगा कि भारत के इस इलाके में कहां से, यानि किस ग्लेशियर से जलधारा ले जायी जा सकाती है. ऐसा माना जाता है कि गगा की सात धारा है यानि सब छोटी छोटी नदियां जो हो सकता है सभी भगीरथ से पहले किये गये प्रयासों का परिणाम रहे हों और शायद ऐसा ही है किंतु भगीरथ से पूर्व के सभी प्रयास इसलिये असफल माने गये क्योंकि उनका अवतरण् नहीं हो पाया. इसका कारण चाहे जो भी रहा हो किंतु भगीरथ का प्रयास इस प्रयास का सबसे मह्त्वपूर्ण और अहम हिस्सा रहा है क्योंकि पिछली 3 पीढियों के प्रयास ने भगीरथ को गंगा को पृथवी पर लाने की न केवल प्रेरणा दी बल्कि यह उनके कुल का प्रमुख काम है इसको संज्ञान में लेने के लिये बाध्य भी किया.
इसलिये भगीरथ ने सब्से पहला काम जो गंगा को लाने के क्रम में किया वो था उस ग्लेशियर की तलाश जहां से मुख्य रूप से जल की एक धारा को नीचे की तरफ लाया जायेगा. यह काम इतना आसान नहीं था किंतु सगर से लेकर दिलीप तक ने अपने सन्यास काल में गंगा को लाने का जो प्य्रास किया था उसने इस काम में भगीरथ की बेह्तर मदद की होगी यही वज़ह है कि सभी पुराणों में इस बात की चर्चा नही है. यहां एक बात पर गौर करना जरूरी है कि गंगा का जल उच्च हिमालय की पर्वत शिलाओं से आता है और इस इलाके से किसी जल स्रोत की दिशा मोडने के लिये बहुत प्रयत्न की अवयश्कता होती है. तो भगीरथ के प्रयत्न का पहला चरण गंगा की धारा की खोज और उसे नीचे उतारने के प्रयास से आरम्भ होता है. यानि गोमुख का निर्माण है. धर्मिक इसे ईश्वर रचित मानते हैं किंतु यदि इसको समान्य मनुष्य की नज़र से देखें तो यह एक मानव रचित स्थल ही है जहां से उच्च हिमालय से एक ग्लेशियर को लाने का प्रयास किया गया है. किंतु भगीरथ के सामने यह इस प्रयास के बाद का काम बहुत बडा था कि क्योंकि गंगा को गोमुख से गंगा सगर तक ले जाना था. आसान नहीं था यह.
यदि हम गंगा नदी का मान्चित्र देखें तो पता चलत है गंगा गंगोत्री से निकल कर गंगा उत्तराखन्ड और उत्तर प्रदेश के बीचों बीच बहती है और यमुना उत्तर प्रदेश के किनारे किनारे से होते हुए बुन्देल्खंड फिर इलाहाबाद में प्रवेशकर गंगा में मिल जाती है. ऐसा लगता है कि भगीरथ ने पहले पूरे रास्ते की योज़ना पर काम किया होगा, उन रास्तों पर लोगों को लगया होगा और फिर जगह के मुताबिक छोटी योज़ना पर काम किया होगा.

यहां से पड्ताल शुरु होती है और अनुमान लगाया जा सकता है कि शिव की जटा का मतलब क्या होता है? सगर के 60 हज़ार पुत्र कौन थे? जिस पड्ताल की बात मैन अपने दूसरे भाग में कर रही थी किंतु उस पड्ताल को यदि अब किया जायेगा तब वह ज्यादा प्रभावी रूप से समझा जा सकता है.
अगला भाग जल्द
....................................डा. अलका सिंह

2 comments:

  1. धन्यवाद आपको , आपने पवित्र गंगा की बहुत अच्छी जानकारी दी है ।मै भी इस पवित्र नदी से अन्दर तक जुडा हुआ हू ।जब भी मै उदास ,और जीवन से विरक्ति अनुभव करता था तो इसी गंगा तट पर अनायास चला जाता था । गंगा तट की हवा ,पानी के हिलोरे ना जाने फिर से मुझे कैसे मेरे जीवन प्राणो मे एक नवीन आसक्ति की लहर लौटा देती थी ,मै समझ आज भी नही पाता हू , आस्था के इस भाव को मै नमन करता हू ।
    मैथिल कोकिल कवि विद्यापति की याद भी आ गयी ., कह्ते है -गंगाजी उनके अंतिम समय मे अपनी धारा उनके पास तक ले गयी थी ।
    एक अपराध छॆंमब मोर जानि
    परसल पाय माय तुअ पानि ”.....( हे । मा । मेरे एक अपराध को क्षमा करना ,.. जो मेरे पाव से तुम्हारा जल छु गया है .,,)
    रचना के लिए आपका आभार.,,,।

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  2. बहुत खोज परक और जन-मानस के लिए सुरुचिपूर्ण ....मैं समझता हूँ अलका एस लेख -माला में ११ मोती तो होंगे ही ....इनके प्रकाशन कभी उद्द्यम करेंगे ...बोधि-प्रकाशन से निम्नतम मूल्य मात्र रुय १० /= वाले संस्करण से ....और जगतगुरु श्री शंकराचार्य से विमोचन करा कर अभियान के साथ वितरित भी करेंगे ....लिखती रहो ....बहुत बढ़िया ...उत्तम है ...सच !!

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