Sunday, January 8, 2012

हिमालय की उत्त्पति, गंगा और भगीरथ प्रयास (गंगा भाग 4)

मेरे बचपन के बहुत दिन पहाडों में बीते हैं. बेरीनाग की वादियों में.तब यह एक बहुत छोटी सी जगह हुआ करती थी कुमायूँ में पिथौरागढ जिले की. पापा की वहां पोस्टिंग थी एक लेक्चरर के तौर पर. हरे भरे पहाड और 10 घरों की छोटी सी जगह. शांत, चुपचाप धीमी गति से चलने वाली ये जगह बहुत अद्भुत सी थी मेरे लिये लगता था जैसे रहस्य ही रहस्य बिखरा पडा है सब ओर. वहां के सीधे साधे लोग इस रहस्यों को हमेशा साथ में ले के जीते थे. यह जगह हम भाई बहनो को बहुत रोमंचित करती थी क्योंकि यह सब कुछ हहारे लिये गल्प जैसा था.
लकडी से बना हमारा घर जैसे फिल्मो का अशियाना था. हमारे ड्राईंग रूम की खिडकी जब सुबह खुलती थी तब सामने बर्फीले पहाडों की एक पूरी श्रृंखला दिखती थी. पापा हमें बताते वह चोटी नन्दा देवी की है, वो धौलागिरी और वो पहाअडियों के पार चीन.
सच! वो घर कुछ ऐसा था जैसे जन्नत. घर के ठीक बगल से एक झरना बहता था. सामने पहाड की परम्परा के अनुसार छोटा सा बागीचा था. चारो तरफ हरियाली, पेड पौधे और फूल ही फूल और फल ही फल. बहुत रोमंचित होते थे हम भाई बहन. बिना डर खूब घूमते थे. सब बच्चे हमारे जैसे ही थे किंतु वो काम से पहाडो पर जाते थे हम बस भटकते थे रोमांच में. मुझे आज भी बहुत याद आते हैं बुरांश के फूल, वो बिल्कुल सुर्ख पहाड. वो छोटे छोटॆ सेब सा फल जिसे हम खूब खाया करते थे, वो काफल , वो दाडिम, वो पांगड, जंगली केले और भी न जाने कौन कौन से फल.सब्जी के रूप में असकस, फर्न कई तरह की लोकल सब्जियां. हम अक्सर फलों की तलाश में भटकते थे. काफल सब्से पसन्दीदा था हमारा. माँ बहुत डरा करती थी हमारे घूमने से क्योंकि एक डर भी था तब वहां चीते और लकड्बग्घे का. मेरी माँ ने कई कुत्तों को लकड्बग्घे से बचा घर में संरक्षण दिया था और बस इतने भर से मुहल्ले भर के कुत्ते उसके भक्त हो गये थे. वो जितनी रोटियां हमारे लिये सेंकती उतने ही अपने उन पाल्यों के लिये भी. हिमालय मे6 जितने फल हैं उतनी ही जडी बूटियों की बेहद समृद्ध परम्परा भी है. मुझे याद है मुझे एक बार खूब फोडे हुए थे तब वहां के एक लोकल वैद्य ने मुझे एक काढा दिया था लोकल जडी बूटियों से और मुझे झट से आराम हो गया था.
हिमालय में बिताये मेरे बचपन के दिन इस बात का आभास कराते हैं कि वहां के हर स्थान में पानी, जडी- बूटियों, कन्दमूल फल और भी न जाने किस किस चीज का वास है जो मनुष्य को जीवन ही नहीं उर्जा भी देती है. जहां तक पानी का सवाल है तो लगता है कि पानी जैसे वहां पहाड की जडों से आता है. हम वहां रहते थे तो वहां सरकारी नल में पानी कभी नहीं आया और हमारे यहां पानी हमेशा नौले से भर कर ही आता था. पानी बिल्कुल साफ मीठा और शुद्ध. हम तब कहीं भी जाते थे तो हमें पानी की चिंता नहीं रहती थी. वहां किसी को भी शुद्ध जल की चिता शायद ही थी. पूरा बेरीनाग नौले का ही पानी पीता था.
यहां इस लेख को शुरु करने से पहले मैंने अपने बचपन के दिनो का जिक्र इसलिये क्योंकि हिमालय एक पूरी की पूरी दुनिया है. पूरी की पूरी संस्कृति और परम्परा है. इस मैदानी क्षेत्र से उसका नाता भी एक परम्परा का हिस्सा है इसलिये जब गंगा का जिक्र होगा तो वहाँ हिमालय का जिक्र ना हो ऐसा सम्भव नहीं है क्योंकि दोनो का नाता जैसे पिता पुत्री का है वैसे ही दोनो स्थानो का नाता भी सगे सम्बन्धोयों सा है. इसीलिये. जब हिमालय का जिक्र होगा जडी बूटियों का जिक्र होगा, शिव का होगा, धर्म का होगा, तपस्या का होगा और आस्था का भी होगा, पहाड के जीवन के साथ ही तमाम बातों, जीव जंतु और पेड पौधों का जिक्र होगा. जिक्र होगा हिमालय की सुन्दर वादियों का, हिमालय के ग्लेशियर्स का उससे बनने वाली झीलों, निकलने वाली नदियों और नद्ययों का, बात होगी सभ्यता और संसकृति की. पर, सबसे पहले हिमालय की बात.
भूगर्भशास्त्री मानते है कि हिमालय दुनिया का सबसे नया पहाड है सबसे युवा पहाड्. वो कहते हैं कि एक सौ पचास मिलियन वर्ष पूर्व एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और दक्षणी अमेरिका एक दूसरे से जुडे हुए एक महद्वीप थे. जिसे पंजिया (Pangea) के नाम से जाना जाता था . कालंतर में पृथ्वी के अन्दर होने वाली हलचलों के कारण यह कुछ सालों के विकास क्रम में टूट् कर अलग हुए और अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और अंटाकर्टिका के रूप में तब्दील हो गये . कहते हैं कि हिमालय के बनने से पूर्व जिस जगह पर आज हिमालय खडा है. वहां टेथिस नाम का एक सागर था. जब कालक्रम प्रथ्वी के अन्दर की हलचलो और बदलाव के कारण यह सागर लुप्त हो गया और यहां हिमालय पर्वत अपने विशालकाय रूप में खडा हो गया. भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार हिमालय की उत्पत्ति भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के उत्तर दिशा की तरफ 15 cm प्रतिवर्ष के हिसाब से आने से और युरोपीय महद्वीप से 40 – 50 मिलियन वर्ष पूर्व ट्कराने से हुआ.
हिमालय पर्वत श्रिर्ख ला भूगोलिय विकास का वो हिस्सा है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। संसार की अधिकाश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के लगभग १०० सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ आती हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर सागर माथा या माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है।
इतना ही नहीं हिमालय पर्वत श्रृखला में १०० से ज्यादा पहाड हैं जॊ ७२०० मीटर में फैले हुए हैं। ये सभी पहाड़ छह देशॊं की सीमाओं कॊ छूते हैं। ये देश हैं नेपाल, भारत, भूटान, तिब्ब्त, अफ्गानिस्तान और पकिस्तान. हिमालय रेंज में १५ हजार से ज्यादा ग्लेशियर हैं जॊ १२ हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए है। ७० किलॊमीटर लंबा सियाचीन ग्लेशियर विश्च का दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर है। हिमालय की कुछ महत्व्पूर्ण चोटियां हैं सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है।
इस तरह देखा जाये हिमालय की ये पर्वत श्रिखलायें पश्चिम से पूरब की तरफ जाती हैं. यानि सिन्धु घाटी से लेकर ब्रह्मपुत्र घाटी तक. इस तरह हिमालय से जिन प्रमुख नदियों का उदय होता है उनमें से सिंघु , गंगा , ब्रह्म्पुत्र और यांग्तेज़ नदियां प्रमुख हैं किंतु इसके अलावा भी बहुत सी नदियां हैं जो हिमालाय की ही गोद से निकलती हैं. हिमालय से सम्बन्धित ये कुछ महत्व्पूर्ण तथ्य थे जो गंगा और हिमालय के रिश्तों को जानने के लिये बेहद आवश्यक हैं.
दरसल भगीरथ के पूर्वज जब इस मैदानी क्षेत्र में आये थे तब इस क्षेत्र में जो मानव जातियां रहती थीं वो यहां की मूल निवासी थीं. जिन्हें आज हम आदिवासी, जन जाति के नाम से पुकारते हैं. आदिवासी जीवन आर्य जीवन से बेहड अलग और जंगल पर आधरित जीवन है. जहां कृषि बहुत कम और जंगल के उत्त्पादों पर जीवन आधारित है. इसको सम्झने के लिये भारत के उन आदिवासे क्षेत्रों में जाकर उनके जीवन को समझा जा सकता है जहां वो आज भी 70 प्रतिशत माम्लों में अपने मूल तौर तरीके से रहते हैं. जैसे बैगा, कोरकू, कुछ इलाकों में गोड, अबूझमाड् आदि, किंतु आर्य संस्कृति कृषि प्रधान संस्क़ृति थी. लोग अधिशेष पर जीना सीख गये थे. राज्य, राजाओ नाये रखने और रज्धानियों का उदय हो गया था. इन व्यव्स्थाओं को बनाये रखने के लिये व्यापार तथा अन्य तरीके मनुष्यों ने अपना लिये थे. इस पूरी संस्कृति और सभ्यता में पानी का बडा महत्व था. साथ ही आर्यों की जो शाखा यहां आयी थी वो सिन्धु नदी के समृद्ध मैदान से यहां आयी थी इसलिये वो पानी की अव्शयकाता को न केवल समझती थी किंतु उसके उपयोग की आदी थी. ऐसे में इक्षावाकु बंश के बहुत से राजाओं ने निरंतर जल के कई स्रोतों को तलाशा. कई नदियों को के उद्गम स्थल को देखा और समझा. किंतु अवश्यकता थी कि इस मैदान के बीच से एक धारा गंगा सागर तक जाये जैसा कि ब्रह्मा के आदेश का वर्णन है.
यह सोचने वाला विषय है कि किसी राजा को एक रानी से 60 हज़ार पुत्र कैसे हो सकते हैं ? मेरा मानव मन इस बात को स्वीकार नहीं करता इस तथ्य को और जैसा कि सगर के 60 हज़ार पुत्रों का और अश्वमेघ यज्ञ का वर्णन है उस हिसाब से यह सहज़ ही अनुमान लगया जा सकता है कि राजा सगर का यह प्रयास् था कि इस क्षेत्र पर और यहां के लोगों पर अपनी श्रेष्ठता सथापित की जाये तो जाहिर है कि इस यज्ञ में वो लोग जो उनके साथ सिन्धु घाटी से यहां आये थे उनकी भी श्रेष्ठता की स्थापना जुडी थी. ऐसा माना जाता है कि ये सभी पुत्र बहुत चतुर और साहसी थे जो स्वाभाविक है कि रहे होंगे क्योंकि कोई भी जाति जो अपनी श्रेष्ठता की स्थपना चाहती है बहुत सजग और चतुर होती है इसको हम अंग्रेजों के आने उनकी सन्धियों और उनके तौर तरीकों से समझ सकते हैं. ऐसे में यज्ञ का वो घोडा खोज़ना सगर के साथ आये उन सभी लोगों के लिये आवश्यक था. मैं मुनि के श्राप पर कोई टिप्पणी नही करना चाहती किंतु मेरा यह मानना है कि सम्भवतह सगर के वो साठ हाज़ार पुत्र मुनि के आश्रम तक पहुंचते और वहां से लौटने के क्रम में भूख और पानी की कमी के करण मर गये होंगे. यह उस रज्य काल की एक बडी घटना रही होगी जिसने पूरे शाश्न पर यह दबाव बनाया होगा कि किसी भी जतरह इस क्षेत्र में एक जल स्रोत को यहां लाया जाय.
पानी की कमी की ऐसी अन्य घतनायें इस क्षेत्र में पहले भी मह्सूस की जाती रही होगीं किंतु इतनी बडी आबादी का पानी की कमी से मर जाना पूरे शास्न पर दबाव बनाने के लिये काफी था जिसे ब्रह्मा के आदेश के रूप में रेखंकित किया गया. कितु बडा सवाल यह था कि आखिर किया क्या जाये ? जल स्रोत की खोज कैसे हो? कौन करे? कौन लाये? इस पर रघुकुल के सभी राजाओं ने सतत प्रयास किये.
भगीरथ को हिमालय की उत्त्पति से कितना परिचित थे इसका मुझे पता नहीं किंतु इतना अवश्य पता है कि उनका ज्ञान हिमालय के ग्लेशियरों, गुफाओं उन तमाम रास्तों से गहरा था जहां जहां से गंगा और उनकी अन्य धारायें व सहायक नदियां निकलती हैं. उनको पता था कि हिमालय के कौन से क्षेत्र हैं जहां की बर्फ साल भर पिघलती है और जिसे नीचे ले जाकर लोगों की प्यास को बुझाया जा सकता है. भागीरठ को यह भी पता था कि हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में काम करने में कम दिक्कतें आयेंगी क्योंकि यहां की चट्टाने भंगुर चट्टाने हैं. उन्हें यह भी पता था कि एक संगठित प्रयास और बेहतर कार्य योजना से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है. जैसा कि मैने पिछले अंक में काहा कि बहुत से रघुकुलीय राजा गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये प्रयत्ंशील रहे किंतु पूर्ण सफलता उनके हाथ नहीं लगी. इस्लिये यह कल्पना करना आसान है कि भगीरथ ने अपने पूर्वजों के काम का सब्से पहले मूल्यांकन किया और जो अपनी योज़ना बनायी उनमें उनकी सफलताओं के आगे के काम पर ध्यान दिया जिसमें सफल तरीके से सम्पादन पर ध्यान दिया ताकि गंगा को भारत के उस भाग में लाया जा सके जहां उसकी सख्त आवश्य्कता है. जैसा कि मैं बार बार कह चुकी हूँ कि य काम आसान नहीं था. गोमुख के निर्माण के बाद सम्स्या य भी थी कि गोमुख से निकलने वाली धारा को किन किन पडावों से होकर गुजारा जाये समस्या यह भी थी कि उन अन्य धाराओं का क्या किया जाये जो सगर सहित उनके कई पूर्वजों के प्रयास थे? यह बडे विचार का प्रशन था. और इस्पर सोचना बहुत आव्श्यक था.एग दरसल गोमुख से जो धारा निकलती है उसमें इतना वेग नहीं है जिसको लेकर गंगा ने शिव आग्रह की बात की थी. यह वेग हरिद्व्वार तक आते आते तैयार होता है. इसका मतलब है कि उस शास्न काल में उस वक्त के इंजीनीयरों ने यह अन्दाज़ा अवश्य लगाया होगा कि कितने जल की आवश्यकता पूरे क्षेत्र को है और इतने जल के लिये किस तरह की महायोज़ना तैयार करनी होगी. यह् एक तरह से हिमालय के कई ग्लेशियरों से निकलने वाली कई नदियों को जोदने की महायोजना थी.
अवतरण् की कहानी का वह अंश जिसमें शिव की जाटाओं में गंगा को लपेटने की बात कही गयी उसका आशय ही यही थी कि सिर्फ एक धारा नहीं किंतु हिमालय की कई धाराओ को इस महायोज़ना में शमिल किया जाये, दूसरी मह्त्व पूर्ण बात जो इसके पीछे छिपी थी वह यह कि इस धारा को नीचे लाने के लिये प्र्याप्त काम कर लिया जाना जरूरी है. और यही वज़ह हैकि हर की पौडी का कुशलता से चुनाव कर उसपर् उपयुक्त काम किया गया.

................................ डा. अलका सिंह
गंगा किन किन रास्तों से गुजरीं और पृथ्वी पर कैसे अवतरित हुईं यह प्रसंग जल्द ही

No comments:

Post a Comment