Tuesday, January 3, 2012

गंगा

साल के पहले ही दिन दोस्तों का अग्रह था कि मैं गंगा नदी पर कुछ लिखूँ. दोस्तों को निराश नहीं करना चहती थी सो लिखने बैठ गयी किंतु जैसे ही आंख बन्द कर ‘गंगा’ पर सोचा जैसे उलझकर रह गयी कि क्या लिखूँ ? ऐसा नहीं था कि मेरे पास शब्दों का अकाल था. ना ही ऐसा था कि मैं गंगा के पिछ्ले 20 - 30 सालों की हालत से अपरिचित थी किंतु फिर भी मैं जैसे शून्य हो गयी थी. कई बार अपनी नानी की जुबानी सुने गंगा अवतरण के दृश्य आंखों के सामने आ जाते तो कई बार पटना स्टीमर से जाने के दृश्य सजीव हो जाते. मुझे याद है तब पहलेजा घाट से पटना तक गंगा का ओर अंत नहीं दिखता था. तो कई बार आगरा से कानपुर आते गंगा का गदला पानी आंखों के सामने जैसे तैर जाता. इसलिये यह तै कर पाना बडा कठिन हो रहा था कि गंगा पर क्या और कैसे लिखूँ. इसी उथल – पुथल के बाद मैने तै किया कि मैं अपनी नानी के मुंह से गगा के महात्म की कथा से ही इस आलेख को शुरु करूँ जिससे हर वो आदमी इस नदी और इसके महत्व को एक बार फिर उसी रूप में समझ सके जैसे सदियों से समझता आया था. नानी की जुबानी सुनी कथा का एक बडा करण और भी है क्योंकि गंगा और मेरा नाता सिर्फ कथा कहनियों तक ही नहीं है यह मेरे बचपन और उस बचपन के बहुत से लोगों जो अब यादों में बसे हैं के जीवन से जुडे बहुत से गल्पों की भी धारा रही है. इसलिये दोस्तों की इस फरमाइश पर मैं उन सब स्मृतियों में टहलूंगी और साथ ही गंगा की बदहाली के कारण और उसकी दुर्दशा पर भी बात करूंगी.
गंगा भारत की सबसे महत्व्पूर्ण नदी है जिसका भारत के जीवन, संस्कृति और सम्पूर्ण भारतीय वांग्मय में बडा महत्व है. बचपन में मैने किसी कोमिक में पढा था कि गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये राजा भगीरथ ने एक पैर पर तपस्या की थी. यह बात तब मुझे बडा रोमंचित करती थी कि कैसे राजा भगीरथ एक पैर पर खडे होकर तपस्या करते रहे होंगे? जब भी मन में सवाल जोर पकड्ते मैं झट से एक पैर पर खडे होकर समझने की कोशिश करने लगती और तब एक दिन नानी ने विस्तार से गंगा अवतरण के प्रसन्ग को सुनाया और ये भी बताया कि एक पैर पर खडे होने का असली अर्थ क्या होता है. नानी ने जो कथा सुनायी वो कुछ इस तरह थी -
गंगा हमारे शास्त्रों में सिर्फ नदी नहीं है बल्कि गंगा को एक देवी का स्थान प्राप्त है ऐसा क्यों है इसकी चर्चा से पहले गंगा के महात्म और उसकी उत्पत्ति जो शास्त्र कहते हैं को जानना जरूरी है. हमारे शास्त्र कहते हैं कि गंगा नदी का निमार्ण ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान के पैर के पसीने से किया पर गंगा उस समय तक स्वर्ग की नदी थीं. वह पृथ्वी पर आने को तैयार नहीं थीं. किंतु इनका आना पृथ्वी पर तब तै सा हो गया जब राजा सगर ने अश्व्मेघ यज्ञ किया. कहते हैं सगर एक चक्रवर्ती राजा थे किंतु सगर की बढ्ती ख्याति से इन्द्र को बडी चिंता होने लगी. इन्द्र हर समय सोच में रहते कि सगर की इस ख्याति को कैसे कम किया जाये. यह अवसर इन्द्र को तब मिला जब सगर ने अश्व्मेघ यज्ञ किया. ईर्ष्यालु इंद्र ने अश्व्मेघ यज्ञ का वह घोडा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बान्ध दिया. राजा सगर के 60 हज़ार पुत्र थे जो बहुत बुद्धिमान और तेजस्वी थे. यज्ञ का घोडा अचानक खो जाने के बाद इस खोज में निकल पडे कि आखिर घोडा गया कहां. घोडा खोजते – खोजते वो एक संकरी गुफा में जा पहुंचे और देखा कि यज्ञ का घोडा वहीं बन्धा है. सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया। तपस्या में लीन ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गये। राजा सगर के एक अन्य पुत्र राजकुमार अंशुमान ने अपने सभी भाइयों का अंतिम संस्कार किया किंतु फिर भी उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली. राजा भगीरथ ने जब अपने पूर्वजों से सुना कि सगर के 60 हाज़ार पुत्रों की आत्मा को शांति तब मिलेगी जब गंगा का पृथ्वी पर अवतरण होगा तब उन्होने यह प्रण किया कि वह गंगा को पृथ्वी पर ला कर ही रहेंगे ताकि सगर के पुत्रों का अंतिम संस्कार किया जा सके.
कहते हैं भगीरथ ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति संभव हो सके। अब गंगा अवतरण् का समय काफी निकट था किंतु सवाल अभी भी बाकी था. गंगा का वेग कौन सम्भालेगा ? क्योंकि गंगा ने प्रश्न किया कि मैं इतनी ऊँचाई से जब पृथ्वी पर गिरूँगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? यह सवाल भगीरथ के लिये भी कठिन था. भगीरथ ने विचार किया कि क्या किया जाये. तब ब्रह्मा ने भगीरथ को सलाह दी कि भगवान शिव से निवेदन करें. भगवान शिव ने भगीरथ के निवेदन पर अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई।
नानी की यह कथा बचपन की कई कहनियों में से एक जरूर थी किंतु इस कहानी का हर सिरा रोचक इसलिये था क्योंकि इस मिथकों कथाओं से भरी गंगा को मैं उसके तट पर जाकर बार – बार मह्सूस कर सकती थी. उसे छू सकती थी. गंगा के उस पूरे महात्म को हर आंख में पढ सकती थी. प्रयाग के माघ मेले में हर रोज उस महातम का मेला देख सकती थी. इसलिये गंगा की यह कथा अन्य कथाओं से अलग थी मेरे लिये. पर सच कहूं तो यह वास्तव में हमारे जीवन में क्या अर्थ रखती है इसे ठीक से उस समय तक नहीं जाना था जब तक इलाहाबाद नहीं आयी थी.
1981 में जब पापा का तबादला इलाहाबाद हुआ तब गंगा और मेरा नाता गहरा होता गया. मैं हर रोज गंगा का महत्व देखने और मह्सूस करने लगी. ऐसा इसलिये भी था कि हर रोज हमारे घर कोई ना कोई आ ही जाता कभी गंगा स्नान के नाम पर, कभी अस्थियां विसर्जित करने तो कभी मुण्ड्न और दान पुण्य के लिये. इन रिश्तेदारों का घर आना हमारे जीवन को प्रभावित जरूर करता था किंतु मैं उनकी आखों के श्रद्घा भाव और उनकी आंख में उतर आये अनंत भाव को देख भाव विभोर हो जाती. एक असीम भाव होता था उन सबकी आंख में, एक असीम तृप्ती और अगाध प्रेम इस जल स्रोत से. वह छुट्पन के दिन थे इसलिये गंगा के तट पर जाने की इज़ाज़त कम ही थी. कोई बडा साथ हो तब कभी कभार जाना होता था.
1987 के कुम्भ तक बडी हो गयी थी और पापा की चोरी चोरी अपनी पसन्दीदा जगहों पर घूमने लगी थी. इस जगहों में संगम सबसे प्रिय जगह थी. गंगा यमुना और विलुप्त सरस्वती का संगम. और यहीं से गंगा को अपनी तरह से जानने की मेरी जिद शुरु हुई और मैं गंगा की पड्ताल करने लगी. क्योंकि तब तक गंगा और उसके साथ हो रहे व्यव्हार पर बात होने लगी थी और यही समय था जब नीदर्लैंड की महरानी बीट्रिक्स भारत आयी थीं और इलाहाबाद से हल्दिया तक की जलमार्ग की योज़ना पर काम की खबरें चर्चा में थीं.
इस समय तक पापा मुझे अक्सर बैठा कर काफी गम्भीर बातें करने लगे थे. अपने ज्ञान के कुछ अंश हम भाई बहनों में बांटने लगे थे. और उन्होने मुझे गंगा को धर्म से इतर एक जल धारा के रूप में समझने में मदद की और सोचने को मजबूर किया कि भगीरथ की तपस्या क्या रही होगी. क्या मतलब होगा सगर के 60 हज़ार पुत्रों का. और क्या मतलब होगा शिव की जटाओं का. और बस मैने उसे अपनी तरह से समझने का प्रयास शुरु किया. डा. अलका सिंह् अगला भाग .....................

2 comments:

  1. पूरी पृथ्‍वी पर गंगा ही सबसे ज्‍यादा जीवंत नदी है अच्छा लगेगा और जानना । गंगा से भी विशाल नदिया पृथ्‍वी पर है पर गंगा के पास कुछ और है, जो पृथ्‍वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है..अगर किसी मुल्‍क की भी कोई आत्‍मा होती हो और उसके प्रतीक होते हो तो, गंगा ही हमारा प्रतीक है शायद ! पहले भाग हेतु आभार ।

    ReplyDelete
  2. सब कहते है , ' गंगाजी प्रदूषित हो गयी है', पर जब भी संगम जाते हैं ' उन्हें ' देखकर स्वगीर्य अनुभूति होती है .......

    ReplyDelete